फ़ेसबुक की तरह
हँसता ही रहा हूँ मैं
कभी इस 'पोज़' में
कभी उस 'पोज़' में
हँसता ही रहा हूँ मैं
मैं देता रहा
ख़ुशख़बरियाँ कई
मेरी बात मेरे
मन ही में रही
यूँही घुट-घुट के
यूँही झूठमूठ में
हँसता ही रहा हूँ मैं
कैसे जुड़ गया
कैसे जोड़ा गया
किस-किससे मुझे
फिर जोड़ा गया
कभी इस गुट में
कभी उस गुट में
हँसता ही रहा हूँ मैं
अपनों की सुनूँ
या कि ग़ैरों की
हर तरफ़ है फ़ौज
बे-सर-पैरों की
कभी इस तर्क पे
कभी उस तर्क पे
हँसता ही रहा हूँ मैं
(रवीन्द्र जैन से क्षमायाचना सहित)
23 जून 2017
सिएटल | 425-445-0827
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