सपाट ही बहता
'गर टकराया न होता
न लहरें उठतीं
न उफान ही आता
'गर किनारा न होता
कोई सहारा कहे
और सराहा करे
और कोई कि काश!
माथे पे सेहरा
बाँधा न होता
है पत्थर एक नींव
कि बाधा है कोई
कोई बताता भी भेद
तो माना न होता
घड़ी के काँटों सा है
सबका सफ़र
बारह पर पहुँच कर भी
पूरा न होता
हमें होता पता
कि मंज़िल नहीं है
तो एक भी क़दम
उठाया न होता
2 जून 2017
सिएटल | 425-445-0827
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