Friday, June 2, 2017

सपाट ही बहता 'गर टकराया न होता

सपाट ही बहता

'गर टकराया होता

लहरें उठतीं

उफान ही आता

'गर किनारा होता


कोई सहारा कहे

और सराहा करे

और कोई कि काश!

माथे पे सेहरा

बाँधा होता


है पत्थर एक नींव 

कि बाधा है कोई

कोई बताता भी भेद

तो माना होता


घड़ी के काँटों सा है

सबका सफ़र 

बारह पर पहुँच कर भी

पूरा होता


हमें होता पता

कि मंज़िल नहीं है

तो एक भी क़दम 

उठाया होता


2 जून 2017

सिएटल | 425-445-0827

tinyurl.com/rahulpoems


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