Sunday, June 23, 2024

उन्नीस दिन

तुम एक सुन्दर फूल हो

जो जिस बाग में है

वहीं रहे तो अच्छा है

मेरे घर में मुरझा जाओगी


तुम खुशबू हो

जिसे महसूस करने का 

सबको हक़ है


तुम रोज़ फ़ोन करती हो

अच्छा लगता है

मगर अपना नहीं बना सकता

फ़ोन बंद हो जाएँगे 

या फ़ोन करोगी भी तो अच्छा नहीं लगेगा

घर की मुर्ग़ी दाल बराबर बन जाओगी

आज तुम वह मुर्ग़ी हो

जो रोज़ सोने के अंडे देती है


आज 19 दिन हो गए

और तुम्हारी कोई खोज-खबर नहीं


माना कि मजबूरी है 

मैं भी ठीक ही हूँ 

इंतज़ार कर लूँगा 

हफ़्तों का ही नहीं 

महीनों का भी

फिर भी तुम्हारे बिना कुछ कमी सी है 

मैं निर्मोही हूँ 

किसी से कोई लगाव नहीं 

न जाने क्यूँ तुमसे बेहद प्यार है

जबकि तुम पचास बार कह चुकी हो

कि तुम्हें नहीं है


कितना तरस रहा हूँ उन्नीस दिनों से

यही सुनने के लिए 

कि तुम्हें मुझसे प्यार नहीं है


राहुल उपाध्याय । 23 जून 2024 । सिएटल 







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