ज़िन्दगी
बिगड़ने, बिगाड़ने
सँवरने, संवारने का सबक है
ज़िन्दगी
तेरी-मेरी आरज़ू की सनक है
कब, कहाँ, किसने
किसी को देखा है मरते-मारते
ज़िन्दगी न ख़्वाब है
न हकीकत है
बस महक है
जब जो मिला
जिससे मिला
सबका शुक्रिया
उनसे ही हुई
ज़िन्दगी की तीरगी में चमक है
न मिलते तो
रोता ही रहता
ऐसा भी नहीं है
चीनी छोड़े बरसो हुए
मिलता न आँखों में नमक है
मेरा-तुम्हारा मिलन-वस्ल
एक खूबसूरत हकीकत है
आज भी तुमसे मिलने की
एक उम्मीद, एक ललक है
राहुल उपाध्याय । 7 मार्च 2025 । सिएटल
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