Friday, March 7, 2025

उम्मीद

ज़िन्दगी 

बिगड़ने, बिगाड़ने 

सँवरने, संवारने का सबक है

ज़िन्दगी 

तेरी-मेरी आरज़ू की सनक है


कब, कहाँ, किसने

किसी को देखा है मरते-मारते

ज़िन्दगी न ख़्वाब है

न हकीकत है

बस महक है 


जब जो मिला

जिससे मिला 

सबका शुक्रिया 

उनसे ही हुई

ज़िन्दगी की तीरगी में चमक है


न मिलते तो

रोता ही रहता

ऐसा भी नहीं है 

चीनी छोड़े बरसो हुए

मिलता न आँखों में नमक है


मेरा-तुम्हारा मिलन-वस्ल 

एक खूबसूरत हकीकत है

आज भी तुमसे मिलने की

एक उम्मीद, एक ललक है


राहुल उपाध्याय । 7 मार्च 2025 । सिएटल 




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