Friday, December 5, 2025

कितना अच्छा लगता है

कितना अच्छा लगता है

जब वह कहती है 

मैं बात नहीं कर सकती 

मन तो बहुत करता है 

पर कोई न कोई हमेशा साथ होता है 


कितना अच्छा लगता है

जब बात करते-करते

कोई आ धमकता है

और वह फ़ोन काट देती है 


कितना अच्छा लगता है 

जब बिन बात किए ही

बात हो जाती है 


कितना अच्छा लगता है 

जब वो हो जाती है आशंकित 

किसी बात पर

और उँगलियाँ 

टटोलती है मेरा स्टेटस 

चलाती है मेरा इन्स्टा


कितना अच्छा लगता है

जब वो कहती है 

कि ये सब उसकी सौत के लिए लिखा है

उसके लिए नहीं 


कितना अच्छा लगता

जब न सर पे हो बाल

न गाल पे हो गाल

और फिर भी 

ज़िंदगी हो मालामाल 


राहुल उपाध्याय । 5 दिसम्बर 2025 । सिएटल 

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1 comments:

Digvijay Agrawal said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द रविवार 07 दिसंबर , 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!