कितना अच्छा लगता है
जब वह कहती है
मैं बात नहीं कर सकती
मन तो बहुत करता है
पर कोई न कोई हमेशा साथ होता है
कितना अच्छा लगता है
जब बात करते-करते
कोई आ धमकता है
और वह फ़ोन काट देती है
कितना अच्छा लगता है
जब बिन बात किए ही
बात हो जाती है
कितना अच्छा लगता है
जब वो हो जाती है आशंकित
किसी बात पर
और उँगलियाँ
टटोलती है मेरा स्टेटस
चलाती है मेरा इन्स्टा
कितना अच्छा लगता है
जब वो कहती है
कि ये सब उसकी सौत के लिए लिखा है
उसके लिए नहीं
कितना अच्छा लगता
जब न सर पे हो बाल
न गाल पे हो गाल
और फिर भी
ज़िंदगी हो मालामाल
राहुल उपाध्याय । 5 दिसम्बर 2025 । सिएटल

1 comments:
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द रविवार 07 दिसंबर , 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
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