मैंने मोहब्बत की है और अनेकों से की है
जिसकी सज़ा मुझे बरोबर मिली है
कहता था मैं महबूब जिनको
पाता हूँ आज मैं दूर उनको
ऐसा नहीं कि मोहब्बत में कमी थी
बस फ़क़त एक की वो जागीर नहीं थी
दुनिया को मोहब्बत से भली रंजिश लगी है
इसीलिए तो हो एक से ऐसी बंदिश नहीं है
झूठ कहती है दुनिया कि मोहब्बत निभाओ
नियम तो यह है कि जिसे ब्याहो, बस उसे ही चाहो
दिल दिया कुदरत न मुझको
फिर नियम क्यूँ इंसां के मानूँ?
कब कहाँ बैठे उठे ये
किताब पढ़ कर क्यूँ ये जानूँ?
झूठी दुनिया
झूठे लोग
इनके रोके
कब रूका ये रोग
इश्क़ हुआ है
और इश्क़ होगा
एक नहीं
कई बार होगा
सिएटल । 425-445-0827
5 अप्रैल 2010
Monday, April 5, 2010
मैंने मोहब्बत की है
Posted by Rahul Upadhyaya at 2:42 PM
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Labels: new, relationship
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3 comments:
wakay me sahi he
pyar usi se jis se sadi ho
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
nice
sir,
ur words are so simple n so divine.great.pyar kia nahi jata ho jata hai.
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