Saturday, May 15, 2010

विंडो खुली है और हवा आती नहीं है

विंडो खुली है और हवा आती नहीं है
कम्प्यूटर की दुनिया मुझे भाती नहीं है


ये ओ-के, ये कैंसल, ये कैसे हैं डायलाग
कहने की छूट जिसमें मुझे दी जाती नहीं है


जला के बचाने की ये उलट-विद्या है कैसी
पी-सी में बर्नर की बात समझ आती नहीं है


ये इंटर, ये इस्केप, ये कीज़ हैं जितनी
कभी भी कोई ताला खोल पाती नहीं हैं


माउस जहाँ है वहाँ निस्संदेह गंदगी भी होगी
लाख लगा लूँ फ़िल्टर, गंदी मेल जाती नहीं है


उनको मिले कम्प्यूटर जिन्हें हैं कम्प्यूटर की तलाश
मुझको तो इसकी संगत रास आती नहीं है


सिएटल । 425-445-0827
15 मई 2010
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विंडो = window; ओ-के = OK; कैंसल = cancel;
डायलाग = dialog; पी-सी = PC; बर्नर = burner;
इंटर = enter; इस्केप = escape; कीज़ = keys
माउस = mouse; फ़िल्टर = filter

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3 comments:

दिलीप said...

bahutahi badhiya sirji...

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

बढ़िया रचना .... संगत भाति नहीं है पर संगत का लाभ हमें है कि बढ़िया पोस्ट पढ़ने को मिल रहा है ...

Sourabh Choudhary said...

उनको मिले कम्प्यूटर जिन्हें हैं कम्प्यूटर की तलाश
मुझको तो इसकी संगत रास आती नहीं है
......Mujhe bhi..