एक दिन था फ़ैसला
तो दुकाने थीं बंद
एक दिन था जन्मदिन
तो दुकानें थीं बंद
एक दिन था समारोह
तो दुकाने थीं बंद
यह सब तभी सम्भव है
जब
या तो जनता हो गूंगी
या शासक के हो कान बंद
दिल्ली | 099588 - 90072
6 अक्टूबर 2010
Tuesday, October 5, 2010
कान बंद, दुकान बंद
Posted by Rahul Upadhyaya at 9:39 PM
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Labels: India
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2 comments:
या तो जनता हो गूंगी
या शासक के हो कान बंद
दोनों ही बाते हैं ...
yahan dono hi baaten fit baithati hain..... gungepan aur bahrepan wali...
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