Tuesday, October 5, 2010

कान बंद, दुकान बंद

एक दिन था फ़ैसला
तो दुकाने थीं बंद

एक दिन था जन्मदिन
तो दुकानें थीं बंद

एक दिन था समारोह
तो दुकाने थीं बंद

यह सब तभी सम्भव है
जब
या तो जनता हो गूंगी
या शासक के हो कान बंद

दिल्ली | 099588 - 90072
6 अक्टूबर 2010

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2 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

या तो जनता हो गूंगी
या शासक के हो कान बंद

दोनों ही बाते हैं ...

डॉ. मोनिका शर्मा said...

yahan dono hi baaten fit baithati hain..... gungepan aur bahrepan wali...