Monday, July 11, 2011

फ़ेसबुक

दुश्मनी मेरी इससे कोई जाती नहीं है
लेकिन फ़ेसबुक की दुनिया मुझे भाती नहीं है

दीवार पे लिखो, दीवार पे बाँचो
यूँ दीवारों से बातें की जाती नहीं है

एक नहीं, दो सौ नौ फ़्रेंड्स हैं मेरे
कहने को दोस्त, लेकिन कोई साथी नहीं है

विडियो और फोटो में कुछ ऐसा फ़ंसा
कि शब्दों की सही वर्तनी अब आती नहीं है

फ़ेसबुक की दुनिया एक सूखे पेड़ सी है यारो
जिसमें शाख ही शाख है कोई पाती नहीं है

11 जुलाई 2011
सिएटल

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6 comments:

रवि रतलामी said...

कोई मुझे च्यूंटी काटता है किसी को मैं
काटने पीटने की बात जरा भी सुहाती नहीं है

अंकित कुमार पाण्डेय said...

अरे इतनी भी बुरी नहीं है वो चेहरों की किताब हमें तो वहां बहुत से मित्र मिले
शायद आपको ही लोगों को अपना बनाने की विधि आती नहीं

nutan vyas said...

badhiya...!

Rahul Upadhyaya said...

रवि साहब - हैरान हूँ कि इतनी भीड़ में आपको मेरा ब्लॉग भी नज़र आ गया. आपकी टिप्पणी - आपकी दो पंक्तियाँ एक नए सत्य को उजागर करती है.

Rahul Upadhyaya said...

नूतन - धन्यवाद!

Saket said...

विचारों, आदर्शों और भवनाओं की एक ऐसी खोखली दुनिया
जैसे वो दिया हो जिसमें बाती नही है ।।