हम और आप तो बस बात करते हैं पौरूष की
और उधर उनका सामना लहू से हर माह होता है
जब मिटते हैं सितारे टिमटिमाते हज़ारों
तब जाके कहीं पैदा आफ़ताब होता है
ये बनने की मिटने की हैं बातें कुछ इतनी अजीब
कि समझाए न समझ आए, बस खुद-ब-खुद अहसास होता है
जो करते हैं प्यार, वो होते हैं खास
उन्हीं के लिए तो लहूलुहान सूरज सुबह-ओ-शाम होता है
था उसमें भी कुछ, था मुझमें भी कुछ
वर्ना ऐसे ही थोड़े किसी का साथ किसी के साथ होता है
24 नवम्बर 2012
सिएटल । 513-341-6798
3 comments:
"लहूलुहान सूरज सुबह-ओ-शाम होता है" - कितने सुन्दर expression में sunrise और sunset को describe किया (!) हैं आपने.
कविता की हर दो lines में कुछ सोचने और समझने की बात है - very nice!
शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन,पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब.
waah
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