रहते थे विदेश में
विदेश में पाया सम्मान
शंका नहीं है कौशल की
करता हूँ उन्हें प्रणाम
रच कर यह कविता - जिसमें उनका नाम
विदेश में पाया सम्मान
शंका नहीं है कौशल की
करता हूँ उन्हें प्रणाम
रच कर यह कविता - जिसमें उनका नाम
Posted by Rahul Upadhyaya at 2:11 PM
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1 comments:
पंडित रवि शंकर जी की सितार मन को छू जाती है. अच्छा लगा की आपने उनके देहांत पर यह श्रद्धांजली लिखी और इतनी जल्दी publish की.
थोड़ा समय लगा कविता में पंडितजी का नाम दिखने में - दिमाग तेज़ नहीं चलता है...
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