होता आतंकवादी तो
अभी तक बेड़ा कूच कर गया होता
और दूर-दराज का एक मुल्क
नेस्तनाबूद हो गया होता
उस मुल्क के धर्म की
उस मुल्क के आचार-विचार की
उस मुल्क के संस्कार की
कड़े शब्दों में भर्त्सना कर दी गई होती
लेकिन
चूँकि
मामला अपने ही घर का है
सब बगले झाँक रहे हैं
और
सेकंड अमेंडमेंट की दुहाई दे रहे हैं
दूसरों को बुरा-भला कहना जितना आसान है
उतना ही मुश्किल है खुद को सुधारना
15 दिसम्बर 2012
सिएटल । 513-341-6798
अभी तक बेड़ा कूच कर गया होता
और दूर-दराज का एक मुल्क
नेस्तनाबूद हो गया होता
उस मुल्क के धर्म की
उस मुल्क के आचार-विचार की
उस मुल्क के संस्कार की
कड़े शब्दों में भर्त्सना कर दी गई होती
लेकिन
चूँकि
मामला अपने ही घर का है
सब बगले झाँक रहे हैं
और
सेकंड अमेंडमेंट की दुहाई दे रहे हैं
दूसरों को बुरा-भला कहना जितना आसान है
उतना ही मुश्किल है खुद को सुधारना
15 दिसम्बर 2012
सिएटल । 513-341-6798
3 comments:
Second Ammendment की adoption December 15, 1791 को हुई थी। आज Dec 15, 2012 को इसे 221 साल हो चुके हैं। Weapons रखने का हक़ नागरिकों को आत्मरक्षा के लिए दिया गया था पर इस shooting के बाद समझ नहीं आ रहा है कि क्या आज भी इस हक़ का संविधान में होना ज़रूरी है क्या?
आपकी बात सही है कि बहार के दुश्मन को दोष देना और उससे निपटना आसान है, मगर जब अंदर से कोई वार करे तो क्या करो? और वो भी कोई ऐसा जिसे मानसिक रोग हो, और जो शायद सही-ग़लत का फर्क समझने की condition में ही न हो। किसे दोष दो? किस पर गुस्सा करो?किससे नफ़रत करो?
एक बात दिमाग में आयी है।जिस तरह यह व्यक्ति मानसिक रूप से विकलांग था उसी तरह से जोश में आकर हिंसा करने वाले सभी व्यक्ति मानसिक रूप से विकलांग ही तो हैं। चाहे वो कोई देश चला रहे हों या अपना घर, या फिर अपना धर्म। ऐसे सभी व्यक्तियों को नि:शस्त्र रखने का प्रयास किया जाना चाहिए और जागरुक समाज को इन्हें काबू में रखना चाहिए।
nice
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