Thursday, March 14, 2013

जहाँ धुआँ है वहाँ आग भी होगी

वोट डलें. आग लगी. धुआँ हुआ.
और इस कविता का जन्म हुआ
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जहाँ धुआँ है वहाँ आग भी होगी
जले हुए पुरजों की भरमार भी होगी


किसने किस का नाम लिखा था
किसने किस का साथ दिया था
कौन जानता था कि
ये बातें खतरनाक भी होगी


जिन्हें लिखने में एक वक़्त लगा था
जिन्हें लिखते वक़्त एक स्वप्न जगा था
कौन जानता था कि
पलक झपकते ही वे राख भी होगी


आग-पानी से ये रिश्ता है कैसा
एक जलाए, एक गलाए
कौन जानता था कि
जीवनदाता के हाथो ज़िंदगी बर्बाद भी होगी


हम और आप बने फिरते हैं
न जाने किस तैश में तने रहते हैं
जबकि सब जानते हैं कि
देह एक-न-एक दिन ख़ाक भी होगी


14 मार्च 2013
सिएटल ।
513-341-6798
 

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1 comments:

Anonymous said...

जब news पढ़ी थी तो बस इतना ही सोचा था की election process चल रहा है. आपकी कविता पढ़कर एक अलग perspective मिला है. बात बहुत गहरी लिखी है आपने.