Saturday, September 23, 2017

सामाँ फेंका तो कश्ती हल्की हो गई

सामाँ फेंका तो कश्ती हल्की हो गई

तूफ़ाँ आया तो लगा ग़लती हो गई


क्या सही, क्या ग़लत, क्या पता

ख़ुश हुआ, जब बात मन की हो गई


सूरज हो, चाँद हो, या चराग हो कोई

जब भी आँख खोली, रोशनी हो गई


फ़ार्म भरा, फ़ीस दी, फोन किया

बैठे-बिठाए ही ज़िन्दगी में भर्ती हो गई


जब स्कूल में था, तो सोचा था कि

एक दिन लगेगा कि छुट्टी जल्दी हो गई


23 सितम्बर 2017

सिएटल | 425-445-0827

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