सामाँ फेंका तो कश्ती हल्की हो गई
तूफ़ाँ आया तो लगा ग़लती हो गई
क्या सही, क्या ग़लत, क्या पता
ख़ुश हुआ, जब बात मन की हो गई
सूरज हो, चाँद हो, या चराग हो कोई
जब भी आँख खोली, रोशनी हो गई
न फ़ार्म भरा, न फ़ीस दी, न फोन किया
बैठे-बिठाए ही ज़िन्दगी में भर्ती हो गई
जब स्कूल में था, तो सोचा न था कि
एक दिन लगेगा कि छुट्टी जल्दी हो गई
23 सितम्बर 2017
सिएटल | 425-445-0827
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