यादों की किताब
के पन्ने
कभी हवा खोल देती है
कभी मैं
कभी गुनगुनाता हूँ
कभी मुस्कुराता हूँ
कभी हड़बड़ा के
किताब बंद कर देता हूँ
किताब
पुरानी हो चली है
जर्जर हो गई है
जिल्द खुल रही है
सिलाई उधड़ रही है
पन्ने बिखर रहे हैं
कुछ खो गए हैं
कुछ फट गए हैं
सोचता हूँ
कुछ पन्ने सहेज लूँ
कविताओं में
23 सितम्बर 2017
सिएटल | 425-445-0827
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