उसूलों से इंसाँ बनता है
ईंटों से मकाँ बनता है
जब दिलवाले मिल जाए
ख़ूबसूरत समां बनता है
साक़ी पिलाता है
और हम पीते जाते हैं
अपने हाथों से
जाम कहाँ बनता है
हमारी-तुम्हारी समझ
बस इतनी है प्यारे
कि जो भी बनता है
सब यहाँ बनता है
ये चाँद, ये तारे
ये नक्षत्र सारे
न जाने क्या-क्या
तमाम वहाँ बनता है
न स्वर्ग है कोई
न नर्क है कोई
जैसा हो मन
वैसा जहाँ बनता है
26 सितम्बर 2017
सिएटल | 425-445-0827
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