Tuesday, September 26, 2017

उसूलों से इंसाँ बनता है

उसूलों से इंसाँ बनता है

ईंटों से मकाँ बनता है

जब दिलवाले मिल जाए

ख़ूबसूरत समां बनता है


साक़ी पिलाता है

और हम पीते जाते हैं

अपने हाथों से 

जाम कहाँ बनता है


हमारी-तुम्हारी समझ

बस इतनी है प्यारे

कि जो भी बनता है

सब यहाँ बनता है


ये चाँद, ये तारे

ये नक्षत्र सारे

जाने क्या-क्या

तमाम वहाँ बनता है


स्वर्ग है कोई

नर्क है कोई

जैसा हो मन

वैसा जहाँ बनता है


26 सितम्बर 2017

सिएटल | 425-445-0827

http://mere--words.blogspot.com/





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