Friday, March 15, 2019

तेरी दुनिया से हो के मगरूर चला

तेरी दुनिया से हो के मगरूर चला
मैं बहुत दूर, बहुत दूर, बहुत दूर चला

इस क़दर दूर कि फिर लौट के भी सकूँ
ऐसी मंज़िल कि जहाँ ख़ुद को भी मैं पा सकूँ
और मजबूरी है क्या इतना भी बतला सकूँ

आय बढ़ भी जो गई, और मैं माँगूँगा
नागरिकता छोड़नी भी पड़ी तो सहर्ष छोड़ दूँगा 
किससे नाता है मेरा, नाता हर-एक से तोड़ लूँगा 

ख़ुश रहूँ मैं हूँ जहाँ, ये हैं दुआएँ मेरी
सबकी राहों से जुदा हो गईं राहें मेरी
कोई नहीं पास मेरे, बस हैं सदाएँ मेरी 

(प्रेम धवन से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय 15 मार्च 2019 सिएटल

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1 comments:

Neelam said...

ख़ुश रहूँ मैं हूँ जहाँ, ये हैं दुआएँ मेरी
बहुत अच्छी प़क्ति है।