कब, कहाँ, कौन है जीता?
अशोक जीते, फिर भी हारे
जितने भी जीते, सब हैं हारे
जो जीते किसी न किसी के सहारे
मैं जीता हूँ केवल, जीता कहाँ हूँ
केवल साँसों की माला तो हार है प्यारे
हम होंगे कामयाब, हम होंगे कामयाब
सरहद की एक ओर ही नहीं लगते हैं नारे
हर एक माँ को अपने बच्चे लगते हैं प्यारे
और हमारी समझ कि बस हमारे हैं न्यारे
राहुल उपाध्याय | 2 मार्च 2019 | सिएटल
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