यदि दो भाईयों में
कहा-सुनी हो जाए
और किसी का किसी पर
हाथ उठ जाए
तो दु:ख होता है
56 इंच का सीना नहीं दिखाया जाता है
आज
गांधी जी होते तो
अनशन कर रहे होते
गोडसे बंदूक ढूँढ रहे होते
यदि हत्या हो जाती
तो देश में जश्न होता
बच जाते तो उन्हें
पाकिस्तान जाने को कहा जाता
सच
वक़्त कितना बेरहम है
सब भुला देता है
सब कुछ बदल देता है
और बदल कर सब कुछ फिर वैसा ही हो जाता है
सच तो यह भी है कि
हर नीति
हर परिस्थिति में लागू नहीं होती
तो फिर क्या करूँ
उन सूक्तियाँ का
उन सद्विचारों का
उन शहद में लिपटी
पुष्पों से सुसज्जित पंक्तियों का
जिन्हें तुम सुबह-शाम मुझे भेजते हो
जिनमें कहा जाता है कि
आँख के बदले आँख
सबको अंधा कर देती है
और वसुधैव कुटुम्बकम्
या तो उन पर अमल करो
या फिर बिना भेजा इस्तेमाल किए
उन्हें इधर से उधर भेजना बंद करो
26 फ़रवरी 2019 | सिएटल
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