Thursday, February 14, 2019

तुम मिलोगी यह सोचकर

तुम मिलोगी यह सोचकर
कुछ लम्हें 
तह लगाकर रखे हैं
ताकि सिलसिलेवार तुम्हें सब सुना सकूँ 
कि कैसे छायागीत पर अपना गीत बजा
चाँद थमा
रात रूकी
आसमाँ झुका
महफ़िल जमी
और एक कविता बही ...

उस कविता के शब्द
तो मैं दुनिया को सुपुर्द कर चुका हूँ
लेकिन उनके सही मायने
तुम ही समझोगी
एक ही साँस में 
जब मैं पढ़ूँगा 
और तुम सुनोगी
हर बिन्दु
हर बिन्दी
हर नुक़्ता 
हर द्विअर्थी शब्द
जो कहा वह भी
जो नहीं कहा वह भी
सब समझ जाओगी

क्या तुम अब भी यही सोचती हो
कि हम
एक दूजे के लिए
नहीं है?

तुम मिलोगी यह सोचकर ...

14 फ़रवरी 2019
सिएटल

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