तुम मिलोगी यह सोचकर
कुछ लम्हें
तह लगाकर रखे हैं
ताकि सिलसिलेवार तुम्हें सब सुना सकूँ
कि कैसे छायागीत पर अपना गीत बजा
चाँद थमा
रात रूकी
आसमाँ झुका
महफ़िल जमी
और एक कविता बही ...
उस कविता के शब्द
तो मैं दुनिया को सुपुर्द कर चुका हूँ
लेकिन उनके सही मायने
तुम ही समझोगी
एक ही साँस में
जब मैं पढ़ूँगा
और तुम सुनोगी
हर बिन्दु
हर बिन्दी
हर नुक़्ता
हर द्विअर्थी शब्द
जो कहा वह भी
जो नहीं कहा वह भी
सब समझ जाओगी
क्या तुम अब भी यही सोचती हो
कि हम
एक दूजे के लिए
नहीं है?
तुम मिलोगी यह सोचकर ...
14 फ़रवरी 2019
सिएटल
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