Tuesday, December 31, 2019

गाड़ी चाहे टेस्ला हो

गाड़ी चाहे टेस्ला हो
या हण्डाई
नारियल तोड़ ही दिया जाता है

इस कार का 
एक्सीडेंट होगा या नहीं 
यह दु:ख देगी या सुख
यह इस बात पर निर्भर करता है
कि इसके टायर के नीचे
कितने नींबू कुचले गए

चार लाख का घर हो
या चालीस लाख का
सत्यनारायण की कथा
करवा ही ली जाती है
क्या पता कोई बला टल ही जाए

एक ही किताब को
हर मंगल को बाँचने में 
एक-डेढ़ घण्टा ख़राब 
हो भी जाए तो क्या?
क्या पता जीवन 
मंगलमय हो जाए?

संस्कृति और धर्म के बीच
जब अंतर कम होता नज़र आए
सब धुँधलाता जाए
तो एक बार नए सिरे से
सोच विचार कर लेना 
लाज़मी हो जाना चाहिए

राहुल उपाध्याय । 31 दिसम्बर 2019 । सिएटल

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4 comments:

Sweta sinha said...

जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ३ जनवरी २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

Sudha Devrani said...

वाह!!!
बहुत सुन्दर..

Prakash Sah said...

वाह! बहुत सही बात लिखी है आपने। बेहतरीन रचना।

संजय भास्‍कर said...

बहुत सुन्दर..