मैं इक लाइक भी दूँ
तो सुलग उठती हूँ
कहाँ है संयम
ख़ुद से पूछती हूँ
कितनी निर्लज्ज
कितनी साहसी हूँ मैं
डर-डर के सही
प्यार करती हूँ मैं
प्यार किया तो
डरना क्या
है सिर्फ़ शकील
या मीरा का तराना
ये डर ही तो है
जो जोत जलाए
उसकी कविता में
ख़ुद को पाए
सीधे-सीधे
हम बात करें ना
इक दूजे को
कुछ कहे ना
वो निर्दयी, इतना दयालु
बात-बात पे कविता वो रच दे
मुझे उठा के फ़लक पे रख दे
राहुल उपाध्याय । 1 दिसम्बर 2023 । सिंगापुर
http://mere--words.blogspot.com/2023/12/blog-post.html?m=1
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