लिखती है, मिटाती है
मोहब्बत और बढ़ाती है
नायाब तोहफ़े देती है
न जाने कैसे जुटाती है
न वक्त कोई, न त्योहार कोई
ख़ुशियों से मुझे नहलाती है
क्या देगा मेरा साथ कोई
जितना वो मेरे संग बतियाती है
क्यूँ ख़ुश करे, क्यूँ बात करे
ये नेमत ऊपर से आती है
नहीं डालता है मुझे घास कोई
और ये है कि सर्वस्व लुटाती है
राहुल उपाध्याय । 3 दिसम्बर 2023 । सिंगापुर
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