रोज नौ से पाँच करता हूँ झूठ को सांच और कुछ नहीं तो करता हूँ तथ्यों की जांच सोमवार से शुक्रवार होता है यही लगातार शनि और रवि बदलती है छवि हँसता हूँ मैं हँसाता हूं मैं कुछ इस तरह ज़िन्दगी बीताता हूँ मैं गुज़ार देता हूँ जीवन बंध के एक समय सारणी में रह जाता हूँ फिर कर्मों का पहले सा ॠणी मैं सिएटल 4 दिसम्बर 2007
Tuesday, December 4, 2007
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2 comments:
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I am sure many of us relate to this poem...
we are living as per "time table"/calendar...
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