Friday, May 8, 2009

मैं जहाँ रहूँ

मैं जहाँ रहूँ, मैं कहीं भी हूँ, ये मेरे साथ है
किसी से कहूँ, मैं जो भी कहूँ, ये सुन लेता हर बात है
कहने को साथ अपने एक दुनिया चलती है
पर खुद के सेल-फोन में उलझी ही रहती है
लिए फोन कान पे, लिए फोन हाथ में …

कहीं तो कोई पत्नी से डर-डर के बात करता है
कहीं तो कोई प्रेयसी से मीठी-मीठी बात कहता है
कहीं पे कोई चिल्ला-चिल्ला के तू-तू मैं-मैं करता है
कहीं पे कोई दबी ऊंगलियों से चुपचाप एस-एम-एस करता है
कहने को साथ अपने …

कहीं तो कोई हर दो मिनट में ई-मेल चेक करता है
कहीं तो कोई हेड-सेट से दिन भर गाने सुनता है
कोई पार्टी में जा के भी ब्लू टूथ से चिपका रहता है
आ कर मेरे घर किसी और से ही बात करता रहता है
कहने को साथ अपने …

सिएटल 425-445-0827
8 मई 2009
(
जावेद अख़्तर से क्षमायाचना सहित)

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