कुत्ते हैं
लेकिन एक भी कुत्ता
यहाँ भोंकता नहीं है
पेड़ हैं
लेकिन एक भी पेड़
यहाँ कचरा करता नहीं है
शांति और सफ़ाई के
इस वातावरण में
मैं रहता हूँ ऐसे
जैसे अस्पताल में
रहता हो कोई
खाता हूँ
पीता हूँ
पढ़ता हूँ
सोता हूँ
मनोरंजन के लिए
कभी-कभार देख लेता हूँ टी-वी
बमबारी की ख़बरें देख कर
ख़ुद को रोक पाता नही हूँ
उठाता हूँ रिमोट
और बदल देता हूँ चैनल
मैं
कचरे के डब्बे में बंद
एक सड़ता हुआ पत्ता नहीं हूँ
मैं
मालकिन की गोद में
सोता हुआ एक कुत्ता नहीं हूँ
मैं हूँ इन सबसे अलग
मैं हूँ इन सबसे अलग
एक टर्मिनल पेशेंट
ये अलग बात है कि
दिखने में ऐसा
मैं लगता नहीं हूँ
सिएटल 425-445-0827
27 मई 2009
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टर्मिनल पेशेंट =terminal patient;
टी-वी = TV; रिमोट = remote ; चैनल = channel
Wednesday, May 27, 2009
टर्मिनल पेशेंट
Posted by Rahul Upadhyaya at 4:56 PM
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2 comments:
बहुत मार्मिक कविता!
संवेदनशील और खुद के अस्तित्व के लिए संघर्ष का भाव। वाह।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
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