इक अरसा हुआ धूप में दाढ़ी बनाए हुए
इक दड़बे में घुस के श्रृंगार करते हैं
हमसे बड़ा कालिदास कोई और क्या होगा
रोज अपने ही चेहरे पे तेज धार करते हैं
कहते हैं कि उठा लेगा उठानेवाला एक दिन
और हम हैं कि अलार्म पे ऐतबार करते हैं
पीढियां अक्षम हुई हैं, निधि नहीं जाती संभाले
रोज-रोज नए मॉडल का इंतज़ार करते हैं
हर गलती में हमारा भी कुछ हाथ होगा
इस सम्भावना से हम कहाँ इंकार करते हैं
चलो अच्छा ही हुआ हमने सच सुन लिया
वरना हम तो समझते थे कि हम तुमसे प्यार करते हैं
सिएटल । 425-445-0827
26 अप्रैल 2010
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अलार्म = alarm; मॉडल = model;
Monday, April 26, 2010
इक अरसा हुआ धूप में दाढ़ी बनाए हुए
Posted by Rahul Upadhyaya at 4:32 PM
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Labels: 24 वर्ष का लेखा-जोखा, CrowdPleaser, Jan Read, TG
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5 comments:
कहते हैं कि उठा लेगा उठानेवाला एक दिन
और हम हैं कि अलार्म पे ऐतबार करते हैं
Achcha hai.
हाय!! क्या याद दिला दिया आपने!! धूप में दाढ़ी बनाये तो अरसा बीता. :)
waah sirji bahut khoob
वाह! मज़ा आ गया! सिर्फ़ याद करके .. वो भी दिन क्या थे, खटिया पर आंगन में बैठ कर धूप में बनाते थे दाढ़ी। और ये शे’र .. क्या गूढ़ अर्थ है
कहते हैं कि उठा लेगा उठानेवाला एक दिन
और हम हैं कि अलार्म पे ऐतबार करते हैं
बहुत बढ़िया है ...
हमसे बड़ा कालिदास कोई और क्या होगा
रोज अपने ही चेहरे पे तेज धार करते हैं
क्या बात है !
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