Saturday, November 12, 2016

मैं 52 का जाऊँगा


मैं 52 का जाऊँगा

और 53 का आऊँगा

दस दिन के सफ़र में 

एक साल पूरा कर आऊँगा


क्या वजह है कि

इस उम्र में भी

इस तरह की पहेलियाँ 

बूझना

मुझे अच्छा लगता है


शरीर बदला

मन बदला

समय

स्थान

सब कुछ बदला

फिर भी

कुछ तो है

जो 

बालपन का ही रह गया

और यूँही 

कभी-कभी हँस पड़ता है

तो कभी रो देता है

रात को सोते-सोते 

घुटने पेट की ओर

मोड़ लेता है


वह कोई दीप ही होगा

जिसने कभी हार नहीं मानी

चाहे भयावह रात हो

समर हो

या झंझावात हो

बाती-तेल-मिट्टी

सब मयस्सर हो जाता है

बस आग होनी चाहिए

जीने की

जलने की

चाह होनी चाहिए


12 नवम्बर 2016

सिएटल | 425-445-0827

tinyurl.com/rahulpoems 


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