Thursday, November 17, 2016

ये रूपया अगर मिल भी जाए तो क्या है


ये काग़ज़ के टुकड़ों पे छपता ये रूपया

ये बैंकों के तालों में छुपता ये रूपया

ये रंगीं लिबासों में सजता ये रूपया

ये रूपया अगर मिल भी जाए तो क्या है


कड़ी धूप में खट के जो था कमाया

कभी पेट भर कर, कभी कम खाया

पाई-पाई पाई तब जो जुटाया

वो रूपया अगर मिल भी जाए तो क्या है


कभी फ़ीस डॉक्टर की, मास्टर की ट्यूशन

कभी आशियाँ, तो कभी कोई बर्तन

इन सब की ख़ातिर जिससे बाँधे थे बंधन

वो रूपया अगर मिल भी जाए तो क्या है


हर बैंक भगदड़, हर लाईन लम्बी 

यहाँ से वहाँ तक है हाय इसकी

है टुकड़ों में बँटता ये काग़ज़ का टुकड़ा

ये रूपया अगर मिल भी जाए तो क्या है


ये इंसां के दुश्मन नवाबों का रूपया

ये तख़्तों के सायों सा चलता ये रूपया

ये बहुरूपिया जो कहलाए रूपया

ये रूपया अगर मिल भी जाए तो क्या है


जला दो इसे फूँक डालो ये रूपया

मेरे सामने से हटा लो ये रूपया

तुम्हारा है तुम ही सम्हालो ये रूपया

ये रूपया अगर मिल भी जाए तो क्या है

ये रूपया अगर मिल भी जाए तो क्या है


(साहिर से क्षमायाचना सहित)

17 नवम्बर 2016

सिएटल | 425-445-0827

tinyurl.com/rahulpoems 




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