न फ़ेसबुक से हूँ, न व्हाट्सैप से
जैसा भी हूँ, अपने आप हूँ
जिनसे मिला इनसे पहले मैं
मैं उन सबकी धुँधली याद हूँ
सुविधाएँ आएँगी-जाएँगी
सुविधाएँ आईं-गईं कई
सुविधाएँ जिन्हें न मिल सकी
मैं उन सबके साथ-साथ हूँ
बदल गया कहीं कोई
सम्हल गया कहीं कोई
जो बदल सका, न सम्हल सका
मैं उस शख़्स की मिसाल हूँ
जो बच गया है यहीं कहीं
जो लूट गया है यहीं कहीं
सीमाएँ तोड़ दीं तबसे मैं
आज़ाद-आज़ाद-आज़ाद हूँ
17 सितम्बर 2018
सिएटल
1 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (19-09-2018) को "दिखता नहीं जमीर" (चर्चा अंक- 3099) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
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