चाह नहीं, मैं ट्रक में भर के
गोदामों में पक जाऊँ
या किसी मेज़ की शोभा बनूँ
और फ़्रीज़ में उम्र बढ़ाऊँ
चाह नहीं मैं पीस-पिसा के
'जाम' में बदला जाऊँ
और पाँच सितारा होटल में
ऊँगलियों पे चाटा जाऊँ
मुझे छोड़ देना उस पेड़ पर
जिस पर बच्चे पत्थर मारे फेंक
कोई न रोके, कोई न टोके
कोई न मासूमों में भरे विवेक
(माखनलाल चतुर्वेदी से क्षमायाचना सहित)
23 सितम्बर 2018
सिएटल
0 comments:
Post a Comment