न नक़ली है, न असली है
जिसे समझा कली, न कली है
मेरे ही अहसासों की मूरत
कभी लगी बुरी, कभी भली है
चलो बनाए सम्बन्ध ऐसे
न बंद हों, न बन्धन हों
रजनीश की बातें आज भी अमर हैं
भले ही स्वीकारने में थोड़ी कमी है
गंगा-जमना-सरस्वती तलक तो सही था
ब्रह्मपुत्र कहाँ से यहाँ फँस गया ये
समन्दर से मिलने की
इसको क्या पड़ी है?
इशारों-इशारों में कहते हैं जो
इशारों-इशारों में कब समझते हैं वो
अपने ही वादों से मुकरना है जीवन
जो तिल-तिल कटे वही ज़िन्दगी है
19 सितम्बर 2018
सिएटल
1 comments:
सुन्दर
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