Wednesday, September 19, 2018

न नक़ली है, न असली है


नक़ली है, असली है
जिसे समझा कली, कली है
मेरे ही अहसासों की मूरत
कभी लगी बुरी, कभी भली है

चलो बनाए सम्बन्ध ऐसे
बंद हों, बन्धन हों
रजनीश की बातें आज भी अमर हैं
भले ही स्वीकारने में थोड़ी कमी है

गंगा-जमना-सरस्वती तलक तो सही था
ब्रह्मपुत्र कहाँ से यहाँ फँस गया ये
समन्दर से मिलने की
इसको क्या पड़ी है?

इशारों-इशारों में कहते हैं जो
इशारों-इशारों में कब समझते हैं वो
अपने ही वादों से मुकरना है जीवन
जो तिल-तिल कटे वही ज़िन्दगी है

19 सितम्बर 2018
सिएटल







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