Thursday, April 18, 2019

आज इंसान बड़ा परेशान है

आज इंसान बड़ा परेशान है
थका-मांदा रोता हर शाम है

क्या हुआ जो ये इतना पढ़ा है?
पढ़-लिख कर क्या आगे बढ़ा है?
हर तरफ़ इसका माथा झुका है
हर मंदिर में हाथ जोड़े खड़ा है
यूँ का यूँ ही धरा ज्ञान-विज्ञान है 

है सशक्त पाँवमार्ग नहीं है
है धुआँ ही धुआँआग नहीं है
उठता है रोज़ सवेरे
पर खुली इसकी आँख नहीं है
जग के भी जग से अनजान है

जीने के दिन आज बेशक बढ़े हैं 
पर कोल्हू के बैल से सेठ से बँधे हैं
ख़ुद की आवाज़ से है डर इतना कि
कानों में तार लगातार लगे हैं 
रोज़ निर्बल होता ये इंसान है

राहुल उपाध्याय  18 अप्रैल 2019  सिएटल

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2 comments:

ज्योति सिंह said...

बेहतरीन रचना ,बधाई हो आपको

Mayank Jindal said...

Ekdum correct ..