उलझन सुलझे ना
उम्मीदवार अच्छे ना
वोट दूँ किसे मैं, वोट दूँ किसे
मेरे दिल का अंधेरा
हुआ और घनेरा
कि किसी के कहने से
नहीं होगा सवेरा
खड़े दो निक्कमे
थक गया सोच-सोच के
वोट दूँ किसे मैं, वोट दूँ किसे
जब भी चुनाव आए
ये मुझे बहकाए
तरह-तरह के वादे करके
जिन्हें ये निभा न पाए
न भाजपा रास आई
न कांग्रेस मन भाई
वोट दूँ किसे मैं, वोट दूँ किसे
जिसे भी पूछा उसने
कहा कि यहाँ से कट ले
इस देश की हालत
न बदली, न बदले
जेपी-अन्ना भी
को मिली नाकामी
वोट दूँ किसे मैं, वोट दूँ किसे
(साहिर से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 6 अप्रैल 2019 । सिएटल
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