कोई रुलाता है तो आता है फ़ोन उसका
वरना इस जहाँ में है कौन किसका
अपनी-अपनी दुनिया है सबकी
दे के मुस्कान हर कोई खिसका
चलो किसी को अपना बना लें सोचते ही सारा ख़ुमार है पिचका
उठते-बैठते टूटे संबंध हज़ारों
तोड़ ही देता है पीठ हल्का सा तिनका
आँखों में कहाँ हैं अब प्यार किसी के
वैक्सीन वालों को नहीं रोग का चस्का
राहुल उपाध्याय । 25 अक्टूबर 2025 । सिएटल

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