Wednesday, December 5, 2007

कैसे जताए अपने प्यार को

कैसे जताए अपने प्यार को चाहते हैं किसी और ही यार को हर मौसम का अपना अंदाज़ है कौन समझाए इन सदाबहार को जीत लेगा जो सबका दिल गले लगाएगा वहीं हार को जीत के भी सुख से जीता नहीं जीता जो उठा के हथियार को जान लेंगे जान लेने के बाद किस मर्ज़ ने मारा बीमार को मत है सब का कि मत मिलो मत न मिलें जिस उम्मीदवार को लेन देन से मेरा कुछ लेना देना नहीं क्या भेंट दू परवरदिगार को? परी सी बहू का बस एक वार विभाजित कर दे परिवार को जो चाहता हूं वो मिलता नहीं देख चूंका कई इश्तेहार को चाहे न चाहे सब चले जाएंगे समय न मानेगा इंकार को हाथ से छूट जाएगा सब सज़ा तो मिलेगी गुनहगार को सतयुग में जीना आसान था कलियुग भारी पड़ेगा अवतार को काश ये वक्त थम जाए यहीं सोचता हूं हर इतवार को सच खुद कह पाते नहीं कोसते हैं क्यूं अखबार को? बाजूओं में खुद के दम नहीं दोष देते हैं मझधार को सिएटल 5 दिसम्बर 2007

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1 comments:

Anonymous said...

Ultimate One