Friday, September 5, 2008

जुदाई

यार मेरा मुझसे आज जुदा हो गया
जो भी था पल भर में हवा हो गया

हँसता था वो
हँसाता था वो
बात बात पर गीत
गाता था वो
आज मुझे रोता छोड़ वो दफ़ा हो गया

न मेरी सुनता है वो
न मेरी मानता है वो
कर के ही रहता है
जो भी ठानता है वो
सोचा था क्या और ये क्या हो गया

मुझ पे मरना भी था
दुनिया से डरना भी था
हर कदम उसे
फ़ूंक-फ़ूंक के रखना भी था
कर्तव्य में जल प्यार फ़ना हो गया

सिएटल,
5 सितम्बर 2008
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फ़ना = विनाश

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2 comments:

MANVINDER BHIMBER said...

bahut sunder likha hai ...man ko chu gaya hai..

संगीता पुरी said...

मुझ पे मरना भी था
दुनिया से डरना भी था
हर कदम उसे
फ़ूंक-फ़ूंक के रखना भी था
कर्तव्य में जल प्यार फ़ना हो गया
क्या खूब लिखा है।