Thursday, September 11, 2008

शक़

बातों में बात है
बात एक लाख की
जो करते हैं शक़
नहीं कर सकते हैं आशक़ी

क्या करेंगे वो इश्क़
जिन्हें खाता हो शक़
जिनके मन में हो खोट
कैसे पहुँचेगे वो दिल तक
दिल तो समझे बस बातें जज़बात की

दायें भी देखें
बाएँ भी देखें
हर तरफ़ देख कर
पाँसा जो फ़ेंके
वो जीत भी जाए तो ऐसी जीत किस काम की

शक़ ने इस कदर
जकड़ा उन्हें
कि मैं था प्रेम
लगा प्रेम चोपड़ा उन्हें
ऐसी भी क्या दोस्ती जो दोस्ती हो बस नाम की

न आप हैं शक़्क़ी
न आप हैं शक़्क़ी
हम सब हैं भरोसेमंद
ये बात है पक्की
मैं तो बात कर रहा हूँ इस दुनिया जहान की

सिएटल,
11 सितम्बर 2008
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आशक़ी = आशिक़ी, प्रेम

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3 comments:

Anonymous said...

हमें शक हो रहा है आजकल प्रेम के पत्ते फ़ेंटे जा रहे हैं!

Shastri JC Philip said...

"ये बात है पक्की
मैं तो बात कर रहा हूँ इस दुनिया जहान की"

लगता तो नहीं है कि पूरी तरह से इस दुनिया जहान की बात हो रही है!



-- शास्त्री जे सी फिलिप

-- समय पर प्रोत्साहन मिले तो मिट्टी का घरोंदा भी आसमान छू सकता है. कृपया रोज कम से कम 10 हिन्दी चिट्ठों पर टिप्पणी कर उनको प्रोत्साहित करें!! (सारथी: http://www.Sarathi.info)

Anonymous said...

Bahut hi funny tha, Rahul - Prem laga Prem Chopra :-)