Saturday, August 1, 2009

जी-पी-एस

मैं
अच्छी तरह से वाकिफ़ हूँ
शहर के चप्पे-चप्पे से
हर ऊँचे-नीचे
टेढ़े-मेढ़े रास्ते से
एवेन्यू से, स्ट्रीट से
पार्कवे से, कल-डि-सेक से,
हर कोर्ट से,
हर लेन से,

मैं अच्छी तरह से वाकिफ़ हूँ
कौन सी सड़क कहाँ जा कर
चुपचाप अपना नाम बदल लेती है
चेरी से जैम्स
और सहाली से 228th बन जाती है

मैं यह भी जानता हूँ कि
कौन सी सड़क खत्म होने पर भी खत्म नहीं होती
और दुबारा जन्म ले लेती है झील के उस पार

मैं
अच्छी तरह से वाकिफ़ हूँ
शहर के चप्पे-चप्पे से
लेकिन फिर भी
जी-पी-एस साथ लेकर चलता हूँ
इसलिए नहीं कि वो मुझे रास्ता बता सके
बल्कि इसलिए कि
जब वो कहे - यहाँ मुड़ो
मैं न मुड़ूँ
और
कुछ क्षणों के लिए
महसूस कर सकूँ
कि अपनी मर्जी का मालिक होना
किसे कहते हैं

सिएटल,
1 अगस्त 2009

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1 comments:

Yogi said...

Very nice Rahul ji.

End tak pata nahi chalne diya, ke aapne GPS par post kyo likha..

Last line ne kamaal kar diya,

jab mehsoos hota hai, ke apni marzii kaa maalik hona kya hota hai.