बहुत दिन हुए एक कविता लिखी थी
जिसमें मुझे एक सूरत दिखी थी
आज देखा तो कुछ भी नहीं है
अक्षर हैं, हस्ताक्षर नहीं है
शीर्षक सही, तिथि भी वही है
मन की लेकिन वो परिस्थिति नहीं है
कागज़ बदलूँ, कुछ फ़ाँट सुधारूँ
क्या करूँ जिससे उसे उभारूँ?
उपमाओं की कोई कमी नहीं है
अलंकारों की भी भीड़ लगी है
किसी भी रस का अभाव नहीं है
फिर भी मन में भाव नहीं है
शब्द बदलूँ, कुछ पर्याय सुधारूँ
क्या करूँ जिससे उसे उभारूँ?
दुनिया चलती दो पदों से
इसमें तीन पद पर गात नहीं है
तरह-तरह के हथकंडे लेकिन
आता कुछ भी हाथ नहीं है
सरस्वती पूजूँ, किसे पुकारूँ?
क्या करूँ जिससे उसे उभारूँ?
सिएटल
1 फ़रवरी 2011
जिसमें मुझे एक सूरत दिखी थी
आज देखा तो कुछ भी नहीं है
अक्षर हैं, हस्ताक्षर नहीं है
शीर्षक सही, तिथि भी वही है
मन की लेकिन वो परिस्थिति नहीं है
कागज़ बदलूँ, कुछ फ़ाँट सुधारूँ
क्या करूँ जिससे उसे उभारूँ?
उपमाओं की कोई कमी नहीं है
अलंकारों की भी भीड़ लगी है
किसी भी रस का अभाव नहीं है
फिर भी मन में भाव नहीं है
शब्द बदलूँ, कुछ पर्याय सुधारूँ
क्या करूँ जिससे उसे उभारूँ?
दुनिया चलती दो पदों से
इसमें तीन पद पर गात नहीं है
तरह-तरह के हथकंडे लेकिन
आता कुछ भी हाथ नहीं है
सरस्वती पूजूँ, किसे पुकारूँ?
क्या करूँ जिससे उसे उभारूँ?
सिएटल
1 फ़रवरी 2011
1 comments:
Man Kee tees kee badee acchee vyakhyaa kee, Badhaayee!
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