मैं
साल की कृत्रिम सीमाओं को नहीं मानता हूँ
और न ही इस पचड़े में पड़ना चाहता हूँ
कि साल में 365 दिन होते हैं या 365 और एक चौथाई
और न हीं इस द्वंद में फ़ंसना चाहता हूँ
कि साल एक जनवरी को बदलता है या चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को
मैं तो बस इतना चाहता हूँ
कि आपके जीवन का हर पल
सुहाना हो
होंठों पे गीत हो
जो किसीको सुनाना हो
ईश्वर आपको इतनी शक्ति दें
कि
झूठ बोलना न पड़े
सच कड़वा न लगे
और जब जितना मिले
उसमें घर चलाना
बुरा न लगे
आपका शुभेच्छु
राहुल
1 जनवरी 2013
सिएटल । 513-341-6798
3 comments:
ईश्वर का प्यार, अपनों का साथ, सुहाने पल, होठों पे गीत - यही चाहिए हर साल, हर दिन...
Happy New Year! :)
आपकी कविता से मुझे कबीर का एक दोहा भी याद आया, राहुल, जो मझे बहुत अच्छा लगता है:
"साईं इतना दीजिये जा में कुटुंब समाये,
मैं भी भूखा न रहूँ साधू न भूखा जाये"
उठ,नए विश्वास से बंजर धारा से खुद को जोड
नयी उम्मीदों के साथ नववर्ष की शुभकामनाएँ
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