मैं कोई ईसा नहीं
जो दूँ दुआएँ सलीब से
रखूँ राबता उम्र भर
और करूँ दोस्ती रक़ीब से
बहुत चाहा बनूँ फ़कीर
मैं भी गाँधी-कबीर सा
बुरा हो शुभकामनाओं का
जो मिली मुझे हबीब से
न कपड़ें फटे थे
न कार थी टूटी
लेकिन लब पे आई शिकायतें
तो लगने लगे वो गरीब से
दिल्ली की नारी जो कहे
चलती उसी पे सरकार है
छपने लगे इन दिनों
किस्से कैसे-कैसे अजीब से
'गर मानों
तो ये एक रचना है
वरना हैं शब्द
बिखरें बेतरतीब से
5 जनवरी 2012
सिएटल । 513-341-6798
=============
सलीब - सूली
राबता = सम्बन्ध, सम्पर्क
रक़ीब = प्रतिद्वंदी
हबीब = मित्र
3 comments:
सलीब, रकीब, हबीब, गरीब, अजीब, बेतरतीब - इन सब का कविता में use बहुत अच्छा लगा
"बहुत चाहा बनूँ फ़कीर
मैं भी गाँधी-कबीर सा
बुरा हो शुभकामनाओं का
जो मिली मुझे हबीब से"
Nice! शुभकामनाओं के साथ भी gift receipt होनी चाहिए कि मन चाही न हों तो बदल लेना :)
Bhai wah, kamaal hai. Aap to shaayar hain bemisaal. Hum to kayal hai aap ke kyonki shabdon se ghayal hain aapke.
Bebaak
आपकी बेहतरीन शब्दों की रचना बेहतरीन है,धन्यबाद।
Post a Comment