Wednesday, April 24, 2013

सब नज़रिए की बात है


बर्फ़ से ढके
श्वेत पर्वत भी
काले नज़र आते हैं
जब सूरज
उनके पीछे होता है

यह नज़रों का दोष नहीं
दृष्टिकोण की बात है

मैं तेरे साथ हूँ
कि तू मेरे साथ है?
इसमें क्या द्वंद है
सब नज़रिए की बात है

मैं तुझे नहलाऊँ
मैं तूझे खिलाऊँ
मैं तूझे पिलाऊँ
मैं तूझे सुलाऊँ
कि
मेघ तू बरसाए
धान तू उगाए
नदी तू बहाए
पुरवाई तू चलाए

मैं तेरे साथ हूँ
कि तू मेरे साथ है?
इसमें क्या द्वंद है
सब नज़रिए की बात है

24 अप्रैल 2013
सिएटल । 513-341-6798

Tuesday, April 23, 2013

कैमरा न होता

कैमरा न होता
तो सगाई न होती
स्टेज पे चढ़ कर
बत्ती-सी बत्तीसी चमकाई न होती


कैमरे बिना
कोई ट्रिप पूरी होती नहीं है
गए ताजमहल और वहाँ का फोटो नहीं है?
तो जाकर भी भाईजान आप वहाँ गए नहीं हैं!


कैमरा न हो
तो जन्मदिन तो आते हैं
लेकिन वो जन्मदिन मनते नहीं हैं
बाढ़ पीड़ित बाढ़ पीड़ित लगते नहीं हैं
कपड़े और कम्बल उन्हें मिलते नहीं हैं


कैमरा न हो
तो कंधे से कंधा मिला के हम खड़े होते नहीं है
बच्चों को गोद में लेते नहीं हैं
अंक में उन्हें अपने भरते नहीं हैं


कैमरे के बिना
हम जीवन तो जीते हैं
लेकिन कोई दूसरा देख लेगा
तो क्या सोचेगा
इसके बारे में ज़रा भी सोचते नहीं हैं


....

इसलिए अब सदा मुस्कराता हूँ मैं

23 अप्रैल 2013
सिएटल ।
513-341-6798

Wednesday, April 17, 2013

तुम अगर मुझको न 'लाईक' करो तो कोई बात नहीं

तुम अगर मुझको न 'लाईक' करो तो कोई बात नहीं
तुम किसी और को 'लाईक' करोगी तो मुश्किल होगी

अब अगर ई-मेल नहीं है तो बुराई भी नहीं
न कहा 'हाय' तो कहा 'बाई' भी नहीं
ये सहारा भी बहुत है मेरे जीने के लिये
न बना 'फ़्रेंड' तो बना भाई भी नहीं
तुम अगर मुझको न 'फ़्रेंड' बनाओ तो कोई बात नहीं
तुम किसी और को 'फ़्रेंड' बनाओगी तो मुश्किल होगी

तुम हसीं हो, तुम्हें सब प्यार ही करते होंगे
मैं जो लिखता हूँ तो क्या और भी लिखते होंगे
सब की शायरी में इसी शौक़ का तूफ़ां होगा
सब की कविताओं में यही दर्द उभरते होंगे
मेरी कविताओं पे 'कमेंट'  न दो तो कोई बात नहीं
किसी और को 'कमेंट' दोगी तो मुश्किल होगी

फूल की तरह हँसो, सब की निगाहों में रहो
अपनी मासूम जवानी की पनाहों में रहो
मुझको वो फोटो न दिखाना तुम्हें अपनी ही क़सम
मैं तरसता रहूँ तुम गैर की बाहों में रहो
तुम अगर मुझसे न निभाओ तो कोई बात नहीं
किसी दुश्मन से निभाओगी तो मुश्किल होगी

(साहिर से क्षमायाचना सहित)
17 अप्रैल 2013
सिएटल । 513-341-6798

Tuesday, April 16, 2013

ये क्या हुआ? ये क्यूँ हुआ?

ये क्या हुआ? ये क्यूँ हुआ?
जब-जब ऐसे प्रश्न हुए हैं
मुझको मुझमें नुक्स दिखे हैं
पहले इसका आभास नहीं था
कभी सोनिया तो कभी अंग्रेज़ों को
सर्वनाश की जड़ कहता था

जब-जब बच्चें चीखते-चिल्लाते
एक दूसरे पे हैं हाथ उठाते
मुझको उनमें मेरा अक्स दिखता है
पहले इसका आभास नहीं था
कभी शिक्षा प्रणाली तो कभी समाज को
इनकी कलह की जड़ कहता था

जब-जब पड़ोसी कचरा फेंके
मेरे आंगन में गंदगी फैले
मुझको उसमें मेरा हाथ दिखता है
पहले इसका आभास नहीं था
कभी धर्म तो कभी जात को
दुर्व्यवहार की जड़ कहता था

16 अप्रैल 2013
सिएटल । 513-341-6798

Sunday, April 14, 2013

प्यार के सारे ख़त फ़ाड़ देना सख्त तो लगता है


प्यार के सारे ख़त फ़ाड़ देना 
सख्त तो लगता है
लेकिन रूसवा ना हो जाए 
डर तो लगता है

क्या समझेगा प्यार को कोई
रस्म-ओ-रिवाज़ की बात ही होगी
रिश्तों से उपर उठने में
वक़्त तो लगता है

सात जनम का साथ था लेकिन
पल भर में ही टूट गया
रिश्तों की मालिश ना हो तो
जंग तो लगता है

हम भी ऐसे ही थे यारो
जैसी सबकी फितरत थी
जबसे अपने हैं पैरों पर
फ़र्क़ तो लगता है

आपकी बातों में कोई
घात छुपी है राहुलजी कहीं
सच और सोच के मिश्रण में
सब सच तो लगता है

(हस्तीमल हस्ती से क्षमायाचना सहित)
14 अप्रैल 2013
सिएटल । 513-341-6798
====================
फितरत = स्वभाव
घात = धोखे में रखकर किया जाने वाला अहित या बुराई

Friday, April 12, 2013

प्यार का पहला ख़त पढ़ने में वक़्त तो लगता है

प्यार का पहला ख़त
पढ़ने में वक़्त तो लगता है
दिल की धड़कन को
थमने में वक़्त तो लगता है


क्या कोई कहीं बात छुपी है?
क्या पढ़ना मैं भूल गया?
पंक्तियों के बीच में
पढ़ने में वक़्त तो लगता है


कैसे खींची होगी उसने
माथे पे वो बिंदी काली?
नए-पुराने प्रतीकों को
सुलझने में वक़्त तो लगता है


मेरे नाम का "हु" है ऐसा
टेढ़ा-मेढ़ा और चुटीला
अपने-आप को दर्पण में
निरखने में वक़्त तो लगता है


जाके कह दूँ बात किसी से
या रख लूँ दिल ही के अंदर?
तरह-तरह की उमंगों को
दबने में वक़्त तो लगता है


ता-उम्र रखूँ मैं साथ इसे
या कर दूँ भस्म आज इसे?
ऐसे-वैसे प्रश्नों से
निपटने में वक़्त तो लगता है


काया हो या चिट्ठी कोई
एक दिन जल के राख भी होगी
सुर और सुगंध की यादों को
मिटने में वक़्त तो लगता है


(हस्तीमल हस्ती से क्षमायाचना सहित)
12 अप्रैल 2013
सिएटल ।
513-341-6798

Tuesday, April 2, 2013

सत्कर्म

कितनी सफ़ाई से
हम
अपने सत्कर्मों से
बच जाते हैं


माथे से
तिलक
पोछ देते हैं


कलाई से
कलावा
काट देते हैं


बदन से
जनेऊ
उतार देते हैं


और तो और
जब घर में
हवन
करवाते हैं
तो
कितनी जहमत उठाते हैं
चद्दर बिछाते हैं
टाईल लगाते हैं
अल्युमिनियम फ़ॉईल लगाते हैं
ताकि
उसकी आँच
उसकी राख
फ़र्श को छू न पाए


बस
एक खुशबू है
जिससे हम बच नहीं पाते हैं
पर्दों को धोने के बाद भी
सोफ़ों को साफ़ करने के बाद भी
दीवारों के रंग-रोगन के बाद भी
वो
घर के किसी कोनें में
घर कर जाती है
और
एक परिवार को
बिखरने से
बचा लेती है
वरना
हमने तो
कोई कसर नहीं
छोड़ रखी थी


2 अप्रैल 2013
सिएटल ।
513-341-6798