बर्फ़ से ढके
श्वेत पर्वत भी
काले नज़र आते हैं
जब सूरज
उनके पीछे होता है
यह नज़रों का दोष नहीं
दृष्टिकोण की बात है
मैं तेरे साथ हूँ
कि तू मेरे साथ है?
इसमें क्या द्वंद है
सब नज़रिए की बात है
मैं तुझे नहलाऊँ
मैं तूझे खिलाऊँ
मैं तूझे पिलाऊँ
मैं तूझे सुलाऊँ
कि
मेघ तू बरसाए
धान तू उगाए
नदी तू बहाए
पुरवाई तू चलाए
मैं तेरे साथ हूँ
कि तू मेरे साथ है?
इसमें क्या द्वंद है
सब नज़रिए की बात है
24 अप्रैल 2013
सिएटल । 513-341-6798