ये क्या हुआ? ये क्यूँ हुआ?
जब-जब ऐसे प्रश्न हुए हैं
मुझको मुझमें नुक्स दिखे हैं
पहले इसका आभास नहीं था
कभी सोनिया तो कभी अंग्रेज़ों को
सर्वनाश की जड़ कहता था
जब-जब बच्चें चीखते-चिल्लाते
एक दूसरे पे हैं हाथ उठाते
मुझको उनमें मेरा अक्स दिखता है
पहले इसका आभास नहीं था
कभी शिक्षा प्रणाली तो कभी समाज को
इनकी कलह की जड़ कहता था
जब-जब पड़ोसी कचरा फेंके
मेरे आंगन में गंदगी फैले
मुझको उसमें मेरा हाथ दिखता है
पहले इसका आभास नहीं था
कभी धर्म तो कभी जात को
दुर्व्यवहार की जड़ कहता था
16 अप्रैल 2013
सिएटल । 513-341-6798
जब-जब ऐसे प्रश्न हुए हैं
मुझको मुझमें नुक्स दिखे हैं
पहले इसका आभास नहीं था
कभी सोनिया तो कभी अंग्रेज़ों को
सर्वनाश की जड़ कहता था
जब-जब बच्चें चीखते-चिल्लाते
एक दूसरे पे हैं हाथ उठाते
मुझको उनमें मेरा अक्स दिखता है
पहले इसका आभास नहीं था
कभी शिक्षा प्रणाली तो कभी समाज को
इनकी कलह की जड़ कहता था
जब-जब पड़ोसी कचरा फेंके
मेरे आंगन में गंदगी फैले
मुझको उसमें मेरा हाथ दिखता है
पहले इसका आभास नहीं था
कभी धर्म तो कभी जात को
दुर्व्यवहार की जड़ कहता था
16 अप्रैल 2013
सिएटल । 513-341-6798
2 comments:
यह आपकी humility है राहुलजी कि आप दोष अपने में खोजते हैं। बहुत कठिन है ऐसा कर पाना।
अगर अपने आप को सच्चे मन से देखें, तो जो बाहर की दुनिया में दिखता है, उसी का अंश अपने अंदर भी दिखने लगता है; और जो अपने अंदर है उसी का रूप बाहर भी दिखता है.
बहुत गहरी सोच है इस कविता में!
Very good....
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