कितनी सफ़ाई से
हम
अपने सत्कर्मों से
बच जाते हैं
माथे से
तिलक
पोछ देते हैं
कलाई से
कलावा
काट देते हैं
बदन से
जनेऊ
उतार देते हैं
और तो और
जब घर में
हवन
करवाते हैं
तो
कितनी जहमत उठाते हैं
चद्दर बिछाते हैं
टाईल लगाते हैं
अल्युमिनियम फ़ॉईल लगाते हैं
ताकि
उसकी आँच
उसकी राख
फ़र्श को छू न पाए
बस
एक खुशबू है
जिससे हम बच नहीं पाते हैं
पर्दों को धोने के बाद भी
सोफ़ों को साफ़ करने के बाद भी
दीवारों के रंग-रोगन के बाद भी
वो
घर के किसी कोनें में
घर कर जाती है
और
एक परिवार को
बिखरने से
बचा लेती है
वरना
हमने तो
कोई कसर नहीं
छोड़ रखी थी
2 अप्रैल 2013
सिएटल । 513-341-6798
हम
अपने सत्कर्मों से
बच जाते हैं
माथे से
तिलक
पोछ देते हैं
कलाई से
कलावा
काट देते हैं
बदन से
जनेऊ
उतार देते हैं
और तो और
जब घर में
हवन
करवाते हैं
तो
कितनी जहमत उठाते हैं
चद्दर बिछाते हैं
टाईल लगाते हैं
अल्युमिनियम फ़ॉईल लगाते हैं
ताकि
उसकी आँच
उसकी राख
फ़र्श को छू न पाए
बस
एक खुशबू है
जिससे हम बच नहीं पाते हैं
पर्दों को धोने के बाद भी
सोफ़ों को साफ़ करने के बाद भी
दीवारों के रंग-रोगन के बाद भी
वो
घर के किसी कोनें में
घर कर जाती है
और
एक परिवार को
बिखरने से
बचा लेती है
वरना
हमने तो
कोई कसर नहीं
छोड़ रखी थी
2 अप्रैल 2013
सिएटल । 513-341-6798
2 comments:
बहुत सुन्दर रचना है! पूजा की खुशबू परिवार को आपस में बांधती है और घर को पवित्र करती है. उसके होने से मकान सच में घर लगता है.
सच बात है कि ख़ुशबू किसी के रोकने से नहीं रुकती
कविता अच्छी लगी
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