फूल ही फूल होते
खार न होते
'गर होती उसे अमन की चाहत
उसके हाथ हथियार न होते
आँख के बदले
आँख न लेते
तो दीवाली जैसे
त्योहार न होते
हमसे न कहो
सबसे प्रेम करो
'गर होता प्रेम
यूँ नरसंहार न होते
'गर सच में चाहते
हो सबका स्वागत
तो खुद के घर के
बंद द्वार न होते
दीवारों से यदि होती
हमें सच में नफ़रत
अपना-पराया
परिवार न होते
राहुल उपाध्याय । 6 फ़रवरी 2020 । सिएटल
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