ग़ज़ब की अप्सरा जब आई क़रीब
करंट सा मुझ को सहसा लगा
कहीं एच वन का चक्कर या हनीट्रैप तो नहीं
शक़-ओ-शुबह का ताँता लगा
खोने से बढ़कर है खोने का डर लॉकर का बेबात ख़र्चा लगा
आँखों में किसी के कोई कब तक झाँके
समझने का तरीक़ा ये कच्चा लगा
जो कहना है कह दो, जो पूछना है पूछ लो
इतना सुलझा न कोई रिश्ता लगा
हर तरफ़ है घायल, हर तरफ है घाव
हर इंसान मुझे रिसता लगा
राहुल उपाध्याय । 12 अक्टूबर 2025 । सिएटल

6 comments:
सुंदर
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में बुधवार, 15 अक्टूबर , 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
सुंदर प्रस्तुति
शक और संदेह ने इंसान को किस कदर बेगाना बना दिया है
बहुत सुंदर
दिलचस्प।
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