Sunday, October 12, 2025

अप्सरा

ग़ज़ब की अप्सरा जब आई क़रीब

करंट सा मुझ को सहसा लगा 


कहीं एच वन का चक्कर या हनीट्रैप तो नहीं 

शक़-ओ-शुबह का ताँता लगा 


खोने से बढ़कर है खोने का डर लॉकर का बेबात ख़र्चा लगा 


आँखों में किसी के कोई कब तक झाँके

समझने का तरीक़ा ये कच्चा लगा


जो कहना है कह दो, जो पूछना है पूछ लो 

इतना सुलझा न कोई रिश्ता लगा 


हर तरफ़ है घायल, हर तरफ है घाव 

हर इंसान मुझे रिसता लगा


राहुल उपाध्याय । 12 अक्टूबर 2025 । सिएटल 


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6 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

सुंदर

Digvijay Agrawal said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में बुधवार, 15 अक्टूबर , 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

Onkar said...

सुंदर प्रस्तुति

Anita said...

शक और संदेह ने इंसान को किस कदर बेगाना बना दिया है

हरीश कुमार said...

बहुत सुंदर

नूपुरं noopuram said...

दिलचस्प।