मैं छुपता रहा
तुम खिलती रही
ये कैसा खेल?
हाथों में मेरे
तुम समाती रही
ये कैसा जादू?
हुआ कि नहीं?
सच था कि सपना?
ये कैसे प्रश्न?
एक नज़र
वो आईना तो देखो
ये कैसा चिन्ह?
सिएटल,
6 अगस्त 2008
Wednesday, August 6, 2008
मिलन
Posted by Rahul Upadhyaya at 12:38 AM
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Labels: valentine
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5 comments:
हाथों में मेरे
तुम समाती रही
ये कैसा जादू?
"good poetry,liked it'
main chhupta raha,tum khilti rahi. sunder bhav aur sunder kawita
behatarin....
बहुत सुन्दर रचना...बधाई स्वीकारें..
***राजीव रंजन प्रसाद
बहुत सुंदर है राहुल...
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