मय न होती तो क्या होता?
नस्ल का मसला बढ़ गया होता
तू-तू मैं-मैं होती रहती
जल्दी खत्म न झगड़ा होता
न साकी होता, न सलीका होता
प्रेम-प्यार का रंग फ़ीका होता
शेर-ओ-शायरी की बात छोड़िए
ग़ालिब तक न पैदा होता
देवदास को हम जान न पाते
नीरज से वंचित रह जाते
रास-रंग का साथ न होता
आदमी बहुत बेसहारा होता
न पीते लोग, न पिलाते लोग
नपे-नपाए रह जाते लोग
मन में कोई आग न होती
अवतरित न कोई मसीहा होता
वे पागल हैं, वे बचकाने हैं
जो मय को बुरा बताते हैं
इक मय ने ही हमें संयम में रखा
वरना बुत साबूत कोई बचा ना होता
मय और माया का साथ पुराना
मय बिना जीवन बेगाना
यह न होती हम न होते
ब्रह्मा ने ब्रह्माण्ड तक रचा ना होता
सिएटल,
6 अगस्त 2009
Thursday, August 6, 2009
मय न होती तो क्या होता?
Posted by Rahul Upadhyaya at 3:30 PM
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4 comments:
ठीक कह रहे हैं राहुल भाई। किसी ने कहा है-
ऐ खुदा पीने वालों की बस्ती कहीं जुदा होती
जहाँ हुक्मन पिया करते न पीते तो सजा होती
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
न साकी होता, न सलीका होता
प्रेम-प्यार का रंग फ़ीका होता
शेर-ओ-शायरी की बात छोड़िए
ग़ालिब तक न पैदा होत
वाह वाह बहुत काम की बात कही आभार्
बहुत बढ़िया कविता है
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विज्ञान पर पढ़िए: शैवाल ही भविष्य का ईंधन है!
bahut hi sundar bhaw liye huye kawita atisundar rachana .....bahut bahut badhaee
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