Tuesday, December 28, 2010

नया साल - चार कविताएँ

साल दर साल
मन में उठता है सवाल
शुभकामनाओं की मियाद
क्यूं होती है बस एक साल?

चलो इसी बहाने
पूछते तो हो
एक दूसरे का हाल
साल दर साल
जब जब आता नया साल
==========
मियाद = duration



दीवाली पर wish किया
birthday पर wish किया
जब भी कोई मौका आया
मैंने उन्हें wish किया

holidays की wish दी तो
हाथ उन्होने खींच लिया
क्रोधित हो उन्होने
मुझे आड़े हाथ लिया

"आप क्यूं बोलते हैं Hinglish?
जब भी आप करते हैं wish
तब ऐसा लगता है कि
आप दे रहे हैं विष"

मैंने कहा, बस please
और बने language police
माना आपको संतोष नहीं
पर Hinglish का दोष नहीं
चाहे जैसे किया, पर wish किया
ये point तो आपने miss किया

शुद्ध हिंदी से क्या आस करे?
कौन इसका विश्वास करे?
विश्वास शब्द में भी
विष वास करे

जब आप देते हैं
मुझे शुभकामना
क्या आप चाहते हैं कि
मुझे मिले शुभ काम ना?

तर्क छोड़, एक जहां सुहाना सा बुन ले
और एक परस्पर प्यार का साबुन ले
जिससे ये संकीर्णता का विष wash करें
और कोई wish करे तो उसका विश्वास करें

सिएटल
12 दिसम्बर 2007
=================
विश = wish; हिंग्लिश = Hinglish; लेंगवेज = language
पॉईंट =point; मिस = miss; वाश = wash


पहले प्रतीक्षा रहती थी वर्ष के आरम्भ की
क्यूंकि तब डायरी बदली जाती थी
पहले प्रतीक्षा रहती थी वर्षा के आरम्भ की
जो सावन की बदली लाती थी

अब कम्प्यूटर के ज़माने में डायरी एक बोझ है
और बेमौसम बरसात होती रोज है

बदली नहीं बदली
ज़िंदगी है बदली

बारिश की बूंदे जो कभी थी घुंघरु की छनछन
आज दफ़्तर जाते वक्त कोसी जाती हैं क्षण क्षण
पानी से भरे गड्ढे जो लगते थे झिलमिलाते दर्पण
आज नज़र आते है बस उछालते कीचड़

जिन्होने सींचा था बचपन
वही आज लगते हैं अड़चन

रगड़ते वाईपर और फिसलते टायर
दोनो के बीच हुआ बचपन रिटायर

बदली नहीं बदली
ज़िंदगी है बदली

कभी राम तो कभी मनोहारी श्याम
कभी पुष्प तो कभी बर्फ़ीले पहलगाम
तरह तरह के कैलेंडर्स से तब सजती थी दीवारें
अब तो गायब ही हो गए ग्रीटिंग कार्ड भी सारे
या तो कुछ ज्यादा ही तेज हैं वक्त के धारें
या फिर टेक्नोलॉजी ने इमोशन्स कुछ ऐसे हैं मारे
कि दीवारों से फ़्रीज और फ़्रीज से स्क्रीन पर
सिमट कर रह गए हैं संदेश हमारे

जिनसे मिलती थी कभी अपनों की खुशबू
आज है बस वे रिसाइक्लिंग की वस्तु

बदली नहीं बदली
ज़िंदगी है बदली

पहले प्रतीक्षा रहती थी वर्ष के आरम्भ की ...

सिएटल 425-445-0827
7 जनवरी 2010
================
वाईपर = wiper; टायर = tire; रिटायर = retire;
ग्रीटिंग कार्ड = greeting card; टेक्नोलॉजी = technology;
इमोशन्स = emotions; फ़्रीज = fridge;
स्क्रीन = screen; रिसाइक्लिंग = recycling

कहने लगे अग्रज मुझसे
तुम तो पूरे अंग्रेज़ हो
अपनी ही संस्कृति से
करते परहेज़ हो

1 जनवरी को ही
मना लेते हो नया साल
जबकि चैत्र मास में
बदलता है अपना साल

तुम जैसे लोगो की वजह से ही
आज है देश का बुरा हाल
तुम में से एक भी नहीं
जो रख सके अपनी धरोहर को सम्हाल

मैंने कहा
आप मुझसे बड़े हैं
मुझसे कहीं ज्यादा
लिखे पढ़े हैं

लेकिन अपनी गलतियाँ
मुझ पे थोपिए
अपने दोष
मुझ में खोजिए

हिंदू कैलेंडर आपको तब-तब आता है याद
जब जब मनाना होता है कोई तीज-त्योहार

जब जब मनाना होता है कोई तीज-त्योहार
आप फ़टाक से ठोंक देते हैं चाँद को सलाम

लेकिन स्वतंत्रता दिवस
क्यूँ मनाते हैं 15 अगस्त को आप?
और गणतंत्र दिवस भी
क्यूँ मनाते हैं 26 जनवरी को आप?

जब आप 2 अक्टूबर को
मना सकते हैं राष्ट्रपिता का जन्म
तो 1 जनवरी को क्यूँ नहीं
मना सकते हैं नव-वर्ष हम?

पहले जाइए और खोजिए
इन सवालों के जवाब
फिर आइए और दीजिए
हमें भाषण जनाब

मेरी बात माने
तो एक काम करें
जिसको जब जो मनाना है
उसे मना ना करें
मना कर के
किसी का मन खट्टा ना करें

Monday, December 27, 2010

अब तो मुझे तुम्हारा नाम भी ठीक से याद नहीं है

अब तो मुझे तुम्हारा नाम भी ठीक से याद नहीं है
और वैसे भी मैं तुमसे कभी मिला नहीं
और ही तुम्हें कभी देखा है
बस एक आवाज़ थी
जो हम दोनों के बीच
एक सेतु थी
अब वो भी कब की डूब चुकी है
बाढ़ के पानी में बह चुकी है
अब बाकी है तो सिर्फ़ एक हसीं हँसी
जो अब भी
महकती है
चहकती है
मेरी सांसों में
हर पल
हर घड़ी

नाम होता
तो -मेल भी होती
गूगल-फ़ेसबूक पर
ईमेज भी होती

चलो चलूँ अब साँस सहारे
जनम-जनम के रूप संहारे
कहाँ कहीं कब कौन किनारे
मिलो मुझे तुम हाथ पसारे?

मिलने की कोई राह नहीं है
मिलन का कोई आभास नहीं है
फिर भी जपूँ मैं सांझ सकारे
नाम किसीका नाम तुम्हारे

सिएटल
27 दिसम्बर 2010

Friday, December 24, 2010

क्रिसमस - दो कविताएँ

क्रिसमस

छुट्टीयों का मौसम है
त्योहार की तैयारी है
रोशन हैं इमारतें
जैसे जन्नत पधारी है

कड़ाके की ठंड है
और बादल भी भारी है
बावजूद इसके लोगो में जोश है
और बच्चे मार रहे किलकारी हैं

यहाँ तक कि पतझड़ की पत्तियां भी
लग रही सबको प्यारी हैं
दे रहे हैं वो भी दान
जो धन के पुजारी हैं

खुश हैं खरीदार
और व्यस्त व्यापारी हैं
खुशहाल हैं दोनों
जबकि दोनों ही उधारी हैं

भूल गई यीशु का जन्म
ये दुनिया संसारी है
भाग रही उसके पीछे
जिसे हो-हो-हो की बीमारी है

लाल सूट और सफ़ेद दाढ़ी
क्या शान से संवारी है
मिलता है वो माँल में
पक्का बाज़ारी है

बच्चे हैं उसके दीवाने
जैसे जादू की पिटारी है
झूम रहे हैं जम्हूरें वैसे
जैसे झूमता मदारी है
=================

मैं ईश्वर के बंदों से डरता हूँ

हर 'हेलोवीन' पे मैं दर पे कद्दू रखता हूँ
लेकिन क्रिसमस पे नहीं घर रोशन करता हूँ
क्यों?
क्योंकि मेरे देवता तुम्हारे देवता से अलग है
लेकिन हमारे भूत-प्रेत में न कोई अंतर है

सब क्रिसमस के पहले खरीददारी करते हैं
मैं क्रिसमस के बाद खरीददारी करता हूँ
क्यों?
क्योंकि सब औरों के लिए उपहार लेते हैं
मैं अपने लिए 'बारगेन' ढूँढता हूँ

सब 'मेरी क्रिसमस' लिखते हैं
मैं 'हेप्पी होलिडेज़' लिखता हूँ
क्यों?
क्योंकि सब ईश्वर पे भरोसा करते हैं
मैं ईश्वर के बंदों से डरता हूँ

Monday, December 6, 2010

विकीलीक्स की लीक

विकीलीक्स की लीक में क्या है बात नवीन?
नेता-राजदूत आपके थे पहले से प्रवीण
थे पहले से प्रवीण, करें बातें गोल-मटोल
सेवक बनके आपके, करें रूपैया गोल

आँखों में वे आपके नहीं झोंकते धूल
इन्हें सुदृढ़ विश्वास है, आप हैं पक्के फ़ूल
आप हैं पक्के फ़ूल, तभी तो इनके सर पर ताज,
इन्हें ही आप कल पूजेंगे, जिन्हें दुत्कारते आज

सिएटल | 513-341-6798
6 दिसम्बर 2010