Tuesday, December 28, 2010
नया साल - चार कविताएँ
Posted by Rahul Upadhyaya at 5:10 PM
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Monday, December 27, 2010
अब तो मुझे तुम्हारा नाम भी ठीक से याद नहीं है
Posted by Rahul Upadhyaya at 6:50 PM
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Labels: intense
Friday, December 24, 2010
क्रिसमस - दो कविताएँ
क्रिसमस
छुट्टीयों का मौसम है
त्योहार की तैयारी है
रोशन हैं इमारतें
जैसे जन्नत पधारी है
कड़ाके की ठंड है
और बादल भी भारी है
बावजूद इसके लोगो में जोश है
और बच्चे मार रहे किलकारी हैं
यहाँ तक कि पतझड़ की पत्तियां भी
लग रही सबको प्यारी हैं
दे रहे हैं वो भी दान
जो धन के पुजारी हैं
खुश हैं खरीदार
और व्यस्त व्यापारी हैं
खुशहाल हैं दोनों
जबकि दोनों ही उधारी हैं
भूल गई यीशु का जन्म
ये दुनिया संसारी है
भाग रही उसके पीछे
जिसे हो-हो-हो की बीमारी है
लाल सूट और सफ़ेद दाढ़ी
क्या शान से संवारी है
मिलता है वो माँल में
पक्का बाज़ारी है
बच्चे हैं उसके दीवाने
जैसे जादू की पिटारी है
झूम रहे हैं जम्हूरें वैसे
जैसे झूमता मदारी है
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मैं ईश्वर के बंदों से डरता हूँ
हर 'हेलोवीन' पे मैं दर पे कद्दू रखता हूँ
लेकिन क्रिसमस पे नहीं घर रोशन करता हूँ
क्यों?
क्योंकि मेरे देवता तुम्हारे देवता से अलग है
लेकिन हमारे भूत-प्रेत में न कोई अंतर है
सब क्रिसमस के पहले खरीददारी करते हैं
मैं क्रिसमस के बाद खरीददारी करता हूँ
क्यों?
क्योंकि सब औरों के लिए उपहार लेते हैं
मैं अपने लिए 'बारगेन' ढूँढता हूँ
सब 'मेरी क्रिसमस' लिखते हैं
मैं 'हेप्पी होलिडेज़' लिखता हूँ
क्यों?
क्योंकि सब ईश्वर पे भरोसा करते हैं
मैं ईश्वर के बंदों से डरता हूँ
Posted by Rahul Upadhyaya at 3:36 PM
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Labels: festivals
Monday, December 6, 2010
विकीलीक्स की लीक
विकीलीक्स की लीक में क्या है बात नवीन?
नेता-राजदूत आपके थे पहले से प्रवीण
थे पहले से प्रवीण, करें बातें गोल-मटोल
सेवक बनके आपके, करें रूपैया गोल
आँखों में वे आपके नहीं झोंकते धूल
इन्हें सुदृढ़ विश्वास है, आप हैं पक्के फ़ूल
आप हैं पक्के फ़ूल, तभी तो इनके सर पर ताज,
इन्हें ही आप कल पूजेंगे, जिन्हें दुत्कारते आज
सिएटल | 513-341-6798
6 दिसम्बर 2010
Posted by Rahul Upadhyaya at 2:02 PM
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Labels: news